उदय हुआ धरम का

बचपन की डोर



माता - पिता के हाथ में

होती है... बचपन की डोर

मत सिखा कुछ ऐसा

की बन जाये बच्चा, कुछ ही और


मत दिखा... उसे ऐसा रास्ता

की भटक जाये कहीं और

वहाँ से होगा लाना मुश्किल

ना करना पड़े...कभी शोर


बनाओ ऐसी बगिया

बनो ऐसे आदर्श माली

की कभी ना सुनना पड़े

बुढ़ापे में बच्चों की गाली


खुद भटके है माँ - बाप

दुर्व्यवहार और व्यसनों मे

तो बच्चा बनायेगा कैसी अपनी पहचान

शीलवान और सदाचारियो में


खुद पर लगाओ पहरा

ना दो दोष... बच्चों को कभी

खुद ना किया, कभी शील का पालन

तो शीलवान बनेंगे कैसे सभी


शील का पालन खुद सीखो

सिखाओ अपने बच्चों को भी

बनाओ उसे कुछ ऐसा

की दिखे सदाचार परछाईं में भी


@ Nir Anand

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