उदय हुआ धरम का

उत्थान

संसार रूपी जेल में
अटक गया इन्सान
समझ रहा है खुदको बड़ा
पा रहा है, झुठ-मुठ का सन्मान

कैसे समझाए इसे?
ना ये मौज-मस्ती का मैदान
पाप कर्मों से है बचना
कब समझ आऐ ये ग्यान?

पा ले धरम का ग्यान
पुण्य कर्मों के बल पर है जिना
यही हो जीवन का उत्थान


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